श्रीकृष्ण माधुरी पृ. 106

श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास

अनुवादक - सुदर्शन सिंह

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राग बिभास

छाँडि सुरति सम्हार जिय की कृष्न छवि हिरदै बसी।
मदन मोहन देखि धाई वैसिए कुंजनि धँसि ॥8॥
कुंज धाम किसोर ठाढे केसरि खौरि बनाइ कैं।
चन्द्रिका पर वारौं बलि गई या भाई कैं ॥9॥
इन नैनन बाँध्यौ प्रन भारी।
निरखत रहैं सदा गिरीधारी ॥10॥
काहू कौ कह्यौ मन नहि आन्यौं।
कमलनैन नैननि पहिचान्यौ ॥11॥
निरखि नंद किसोर सखि री कोटि किरन प्रकासु री।
कालिंदी के तीर ठाढे श्रवन सुनियत बाँसुरी ॥12॥
बाँसुरी बस किए सुर नर सुनत पातक नासु री।
सूर के प्रभु यहै बिनती सदा चरननि बासु री ॥13॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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