श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति(राग वागेश्र-तीन ताल)प्यारी राधे! तू ही मेरे चित्त को रंजन करने वाली है- (नहीं-नहीं) तू ही मेरी चेतनता है-तेरी ही सत्ता से मैं चेतन बना हुआ हूँ। तू ही मेरी सनातन आत्मा है और मैं तेरी आत्मा हूँ-इससे अधिक और क्या कहूँ ॥ 1॥ तेरे जीवन से ही मेरा जीवन है और तेरे प्राणों से ही मेरे प्राणों की सत्ता है। मेरे मन, बुद्धि, नेत्र, कान, त्वचा, रसना और घ्राणेन्द्रिय (नासिका) तू ही है ॥ 2॥ मेरी स्थूल एवं सूक्ष्म इन्द्रियों के सुख रूप विषय तू ही है। तू ही मैं है और मैं ही तू हूँ। बस, तेरा-मेरा सम्बन्ध उपमारहित-अद्वितीय है ॥ 3॥ तेरे बिना मेरी कुछ हस्ती नहीं और मेरे बिना तेरा कुछ अस्तित्व नहीं। तेरा-मेरा यह अनोखा अविनाभाव सम्बन्ध है-मेरे बिना तू और तेरे बिना मैं नहीं रह सकता। बस, यही जीवन का तत्व-सार है ॥ 4॥ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख
क्रम संख्या | अध्याय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज