राधा माधव रस सुधा पृ. 27

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग शिवरंजन-तीन ताल)

हे प्राणेश्वर! तुमसे मैंने सदा लिया-ही-लिया है, लेती-लेती मैं किसी क्षण थकी (अघायी) नहीं। तुमसे मुझको अपार प्रेम और सौभाग्य मिला, परंतु मैं तुमको कुछ भी नहीं दे सकी ॥ 1॥

मेरी त्रुटि अथवा दोष तुमने कभी नहीं देखे; तुम सदा ही देते रहे, देते-देते कभी थके-(अघाये) नहीं, अपना समस्त प्यार मुझ पर उँड़ेल दिया ॥ 2॥

इस पर भी तुम कहते हो- ‘हे प्यारी! मैं तुझको कुछ भी नहीं दे सका। तुम्हारे-जैसी शील-स्वभाव और गुणों से युक्त नागरी एक तुम्हीं हो; मैं तुम पर बलिहारी- न्यौछावर हूँ’ ॥ 3॥

मैं अपने प्राण-प्रियतम तुमसे क्या कहूँ; मैं अपनी ओर जब देखती हूँ तो लाज के मारे गड़ जाती हूँ। प्यारे नन्दकिशोर! (मैं क्या कहूँ) मेरी प्रत्येक करनी में तुमको प्रेम के ही दर्शन होते हैं। (यह तुम्हारी प्रेममयी दृष्टि का चमत्कार है!) ॥ 4॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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