राधा माधव रस सुधा पृ. 25

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग शिवरंजन-तीन ताल)

अहो प्राणप्यारी! मेरा शरीर और मन- सब तेरा ही है, तू ही मेरी सदा एकमात्र स्वामिनी है। मेरे ये शरीर और मन और किसी के किसी काल में न तो उपभोग्य- भोगने की वस्तु हैं और भोगने वाले हैं, यह मेरी सच्ची टेक- प्रण है ॥ 1॥

मेरी देह स्थूल रूप से तेरे समीप [सदा] नहीं रहती- यह सच है, परंतु मेरा जो यह सूक्ष्म शरीर है, वह एक क्षण भी तुझसे विलग नहीं रह सकता, [तेरे वियोग में] अत्यन्त अधीर- विकल हो जाता है ॥ 2॥

यह सदा-सर्वदा तुझी से जुड़ा रहता है और इसी से तेरे चरणों के समीप ही बसा रहता है। कारण, तू ही इसके जीवन की एकमात्र जीवन- आधार है, इसमें कोई भ्रम नहीं ॥ 3॥

उस पर किसी दूसरे का किसी काल में रंच मात्र अधिकार न हुआ है और न होगा। न तो उसके द्वारा किसी को सुख मिलने का और न उसके किसी से किसी प्रकार का सुख मिल सकता है ॥ 4॥


यदि किसी क्षण वह किसी से रंच मात्र भी प्यार करता अथवा प्यार प्राप्त करता दीखे तो (समझ लेना चाहिये कि) वह सब एकमात्र तेरे ही रस का पवित्र विस्तार है और कुछ नहीं ॥ 5॥

तू मुझको यथारूचि सब कुछ (जो चाहे सो) कह सकती है, मैं तो सदा तेरे अधीन हूँ। परंतु मेरी इस बात को कभी अन्यथा मत मानना और न अपने को किसी क्षण दीन कहना ॥ 6॥

इतने पर भी मैं तेरे मन की कभी नहीं कर पाता। इसी से मैं सदा तेरे लिये दुःख का ही कारण बना रहता हूँ ॥ 7॥

परंतु मेरी तो तुझसे यह विनती है की तू अपनी ओर देखकर मेरे समस्त अपराधों को भूल जा और मुझको अपने चरण-कमलों की पावन धूल देकर कृतार्थ- निहाल करती रह ॥ 8॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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