राधा माधव रस सुधा पृ. 17

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग भैरवी तर्ज-तीन ताल)

हे प्रियतमे राधिके! तेरी महिमा उपमारहित, अवर्णनीय और अनन्त है। मैं युग-युगान्तर से बिना विराम लिये उसका गान करता आ रहा हूँ, तब भी उसका कहीं अन्त- ओर-छोर नहीं मिलता ॥ 1॥

तेरे मधुर अनमोल बोल मेरे ह्रदय में आनन्दामृत बरसाया करते हैं। तेरे मधुर कमल-से नेत्र तथा बाँकी भौंहों के मोल मैं सदा के लिये बिक चुका हूँ ॥ 2॥

अपनी मुरली में मैं तेरे उपमारहित मधुर एवं श्रेष्ठ नाम की रात-दिन रट लगाया करता हूँ और अतृप्त नेत्रों से तेरे अत्यन्त मनोहर रूप को नित्य निहारता रहता हूँ ॥ 3॥

तेरे-जैसा निर्मल पवित्र प्रेम मुझको कहीं नहीं मिला, कहीं भी मेरे मन की आशा पूर्ण नहीं हुई। एकमात्र तू ही मुझको ऐसी मिली है, जिसने मेरी अभिलाषा पूरी की है ॥ 4॥

मैं (अपने ही आनन्द से) नित्य तृप्त रहने वाला और सदा निष्काम- कामनाहीन हूँ। ऐसे मुझमें मधुर अपरिमित अतृप्ति और अत्यन्त मधुर अपरिमित कामना जगा देना- यह तेरे अलौकिक प्रेम का ही जादूभरा मधुर फल है ॥ 5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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