राधा माधव रस सुधा पृ. 15

श्री राधा माधव रस सुधा -हनुमान प्रसाद पोद्दार

[षोडशगीत]

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श्रीकृष्ण के प्रेमोद्गार-श्रीराधा के प्रति

(राग परज-तीन ताल)

हे कमल-जैसे नेत्रों वाले श्यामसुन्दर! हे दुःख से छुड़ाने वाले व्रजराज-किशोर! हे मेरे चितचोर! मैं तुमको अपने ह्रदय रूप भवन में निरन्तर- बिना बाधा निहारती रहूँ ॥ 1॥

मेरा मन चाहता है कि लोक लाज, मान-प्रतिष्ठा तथा कुल की मर्यादारूपी समस्त पर्वतों को चकनाचूर करके मैं तुमको सदा ही अपने समीप बनाये रखूँ, एक पलक भी और तनिक भी दूर नहीं रहने दूँ ॥ 2॥

परंतु मैं तो निरी गँवार ग्वालिनी हूँ, गुणों से रीती, कलंकिनी और सदा ही कुरूपा हूँ। इसके विपरीत तुम अत्यन्त चतुर, अनन्त गुणों के भण्डार, कुल के महान् भूषण तथा सुन्दरता के स्वरुप ही हो ॥ 3॥

कहाँ मैं रस के ज्ञान से सर्वथा शून्य, रसहीन और कहाँ तुम रस के मर्मज्ञ तथा रसिकों के सिरमौर हो। इतने पर भी तुम दया के सागर [मुझ पर दया करके ही] मेरे ह्रदय में सदा विराजित रहते हो ॥ 4॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख

राधा माधव रस सुधा
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. महाभाव-रसराज-वन्दना 2
2. राग मालकोस-तीन ताल 4
3. राग रागेश्वर-ताल दादरा 6
4. राग भैरव-तीन ताल 8
5. राग भैरवी-तीन ताल 10
6. राग परज-तीन ताल 12
7. राग परज-तीन ताल 14
8. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 16
9. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 18
10. राग गूजर-ताल कहरवा 20
11. राग गूजर-ताल कहरवा 22
12. राग शिवरंजन-तीन ताल 24
13. राग शिवरंजन-तीन ताल 26
14. राग वागेश्र-तीन ताल 28
15. राग वागेश्र-तीन ताल 30
16. राग भैरव-तीन ताल 34
17. राग भैरवी तर्ज-तीन ताल 36
18. पुष्पिका 38
अंतिम पृष्ठ 39

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