राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पृ. 10

राधा कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र

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अथा श्री राधा कवचम्

धर्मार्थकाममोक्षेषु विनियोगः प्रकीर्तितः।
श्री राधा में शिरः पातु ललाटंराधिका तथा।।9।।
श्रीमती नेत्र-युगलं कर्णौगोपेन्द्र-नन्दिनी।
हरिप्रियानासिकां च भ्रू युगंशशिशोभना।।10।।

धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन सब में ही इसका विनियोग किया जाता है। (कवच के मूल शब्दों का भावार्थ इस प्रकार जानना चाहिये) श्री राधा जी मेरे मस्तक और ललाट की रक्षा करे, श्रीमती दोनों नेत्रों को और गोपेन्द्रनन्दिनी दोनों कानों की रक्षा करें तथा श्री हरिप्रिया जी नासिका की और शशि शोभना जी दोनों भृकुटियों की रक्षा करे।

ओष्टं पातु कृपा देवी अधरं गोपिका तथा।
वृषभानुसुता दताश्चिबुकं गोपनन्दिनी।।11।।
चन्द्रावली पातु गंडं चिह्वांकृष्ण-प्रिया तथा।
कंठं पातु हरि-प्राणा हृदय विजया तथा।।12।।

श्री कृपा देवी ऊपर के होठ की ओर गोपिका जी नीचे के होठ की रक्षा करें, ऊपर के दांतों की श्री वृषभानु सुता और ठोड़ी की श्री गोपनन्दिनी जी रक्षा करें। कपोलों (गालों) की चन्द्रावली जी रक्षा करें और श्री कृष्ण प्रियाजी जीभ की रक्षा करें। श्री हरि प्रिया कंठ की और विजया जी हृदय की रक्षा करें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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