मैंने कभी न चाहा तुम को -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग परज - ताल कहरवा


मैंने कभी न चाहा तुमको, तुमने चाहा बारंबार।
बिना बुलाये ही आ हियमें, दर्शन दिये, किया अति प्यार॥
नित आदर के बदले तुमने मुझसे पा‌ई निज दुतकार।
दूर चले जानेपर मुझको खींच लिया नित भुजा पसार॥
‘लौटो, उस पथपर मत जा‌ओ’-कहा कान में कितनी बार।
तब भी चला गया, लौटाने को तुम दौड़े प्रिय! हर बार॥
चिर अपराधी, पापी का तुमने हँस उठा लिया सब भार।
मेरी निज-निर्मित विपदा से गोद उठाकर लिया उबार॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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