बिरह-दुख सजनी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग टोड़ी - तीन ताल


बिरह-दुख सजनी ! अति सुखरूप।
प्रियतम की प्रिय सुधि कौ सुन्दर साधन परम अनूप॥
गृह-धन-जन-परिजन-सबकी सुधि विसरावत ततकाल।
हिय महँ लाय बसावत मंजुल मोहन-सुधि सब काल॥
छलकत रहत सदा हिय महँ सुचि प्रेमामृत सुख-सार।
सकल अंग नित रहत रस-भरित, जग की सुरति बिसार॥
बिरहानल अति प्रबल करत जग की ज्वाला कौ छार।
करत सुसीतल रूप-सुधा-सागर गँभीर महँ डार॥
दरसन-रुचि पल-पल बाढ़त, पल-पल उतकंठा-जोर।
निसि-दिन एक मधुर चिंतन, कब मिलिहैं नंद-किसोर॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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