प्रेम सुधा सागर पृ. 168

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
त्रयोविंश अध्याय

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फिर उनसे कहा- ‘मेरे प्यारे ग्वालबालों! इस बार तुम लोग उनकी पत्नियों के पास जाओ और उनसे कहो कि राम और श्याम यहाँ आये हैं। तुम जितना चाहोगे उतना भोजन वे तुम्हें देंगी। वे मुझसे बड़ा प्रेम करती हैं। उनका मन सदा-सर्वदा मुझमें लगा रहता है।'

अबकी बार ग्वालबाल पत्नीशाला में गये। वहाँ जाकर देखा तो ब्राह्मणों की पत्नियाँ सुन्दर-सुन्दर वस्त्र और गहनों से सज-धजकर बैठी हैं। उन्होंने द्विजपत्नियों को प्रणाम करके बड़ी नम्रता से यह बात कही - ‘आप विप्रपत्नियों को हम नमस्कार करते हैं। आप कृपा करके हमारी बात सुनें। भगवान श्रीकृष्ण यहाँ से थोड़ी ही दूर पर आये हुए हैं और उन्होंने ही हमें आपके पास भेजा है। वे ग्वालबाल और बलराम जी के साथ गौएँ चराते हुए इधर बहुत दूर आ गये हैं। इस समय उन्हें और उनके साथियों को भूख लगी है। आप उनके लिये कुछ भोजन दे दें।'

परीक्षित! वे ब्राह्मणियाँ बहुत दिनों से भगवान की मनोहर लीलाएँ सुनती थीं। उनका मन उनमें लग चुका था। वे सदा-सर्वदा इस बात के लिये उत्सुक रहतीं कि किसी प्रकार श्रीकृष्ण के दर्शन हो जायँ। श्रीकृष्ण के आने की बात सुनते ही वे उतावली हो गयीं। उन्होंने बर्तनों में अत्यन्त स्वादिष्ट और हितकर भक्ष्य, भोज्य, लह्य और चोष्य - चारों प्रकार की भोजन-सामग्री ले ली तथा भाई-बन्धु, पति-पुत्रों के रोकते रहने पर भी अपने प्रियतम भगवान श्रीकृष्ण के पास जाने के लिये घर से निकल पड़ी - ठीक वैसे ही, जैसे नदियाँ समुद्र के लिये। क्यों न हो; न जाने कितने दिनों से पवित्रकीर्ति भगवान श्रीकृष्ण के गुण, लीला, सौन्दर्य और माधुर्य आदि का वर्णन सुन-सुनकर उन्होंने उनके चरणों पर अपना हृदय निछावर कर दिया था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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