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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
पंचदश अध्याय
परीक्षित! होनहार के वश उन्हें इस बात का ध्यान ही नहीं रहा था। उस विषैले जल के पीते ही सब गौएँ और ग्वालबाल प्राणहीन होकर यमुना जी के तट पर गिर पड़े। उन्हें ऐसी अवस्था में देखकर योगेश्वरों के भी ईश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अमृत बरसाने वाली दृष्टि से उन्हें जीवित कर दिया। उनके स्वामी और सर्वस्व तो एकमात्र श्रीकृष्ण ही थे। परीक्षित! चेतना आने पर वे सब यमुना जी के तटपर उठ खड़े हुए और आश्चर्यचकित होकर एक-दूसरे की ओर देखने लगे। राजन! अन्त में उन्होंने यही निश्चय किया कि हम लोग विषैला जल पी लेने के कारण मर चुके थे, परन्तु हमारे श्रीकृष्ण ने अपनी अनुग्रहभरी दृष्टि से हमें देखकर हमें फिर से जिला दिया है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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