प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 83

प्रेम सत्संग सुधा माला

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उद्धव! तुम्हें विश्वास नहीं होगा- वह मूर्ति, प्यारे श्यामसुन्दर की मूर्ति कभी एक क्षण के लिये भी ह्रदय से नहीं हटती। मैं चलती हूँ, उस समय भी श्यामसुन्दर की छबि मेरे ह्रदय में रहती है। मैं जिस क्षण अपनी दृष्टि को बाहर किसी और पदार्थ की ओर ले जाती हूँ तो देखती हूँ, वहाँ भी मेरे श्यामसुन्दर की छबि है, ह्रदय में भी, बाहर भी केवल श्यामसुन्दर ही दीखते हैं। दिन भर जब तक जागती रहती हूँ, तब तक श्यामसुन्दर, एकमात्र श्यामसुन्दर ही नजरों के सामने रहते हैं। रात में जिस क्षण सोने की चेष्टा करती हूँ, आँखें मूँदती हूँ, उस समय भी श्यामसुन्दर का तिरछी चितवनयुक्त मुखारविन्द सामने रहता है। स्वप्न देखने लगती हूँ, देखती हूँ- श्यामसुन्दर आये हैं, मेरे सामने खड़े हैं, मेरी ओर तिरछी चितवन से देख रहे हैं। मैं पकड़ने दौड़ती हूँ, वे पीछे हटने लग जाते हैं; मैं सहम जाती हूँ, वे भी खड़े हो जाते हैं। फिर पकड़ने के लिये दौड़ती हूँ, फिर भागने लगते हैं। इस प्रकार उनको न पकड़ पाने पर मैं जब रोने लगती हूँ, तब बस, हँसते हुए आकर मुझे ह्रदय से लगा लेते हैं। आँखें खुल जाती हैं- मैं देखती हूँ, विचार करती हूँ, स्वप्न था; पर फिर सामने देखती हूँ-नहीं, नहीं, वे तो सामने खड़े हैं, ये हैं, ये हैं। इस प्रकार उद्धव! एक क्षण के लिये भी श्यामसुन्दर की वह घुँघराली अलकों वाली छबि मेरे मन से नहीं हटती। उद्धव! एक क्षण के लिये भी प्यारे श्यामसुन्दर के सिवा और कोई वस्तु नजर ही नहीं आती। नाराज मत होना- तुम श्यामसुन्दर के प्यारे सखा हो, तुम्हारी बात मैं नहीं सुन पा रही हूँ, पर न सुनने के लिये लाचार हो गयी हूँ। उद्धव! कोई उपाय नहीं रह गया है। उद्धव! न जाने श्यामसुन्दर ने तुम्हें सिखाकर भेजा है या तुम अपने मन से ही इस योग की बात सुना रहे हो; पर कुछ भी हो, तुम्हीं सोचो, हम गाँव की ग्वारिनें योग लेकर क्या करेंगी। सचमुच तुम भूलते हो, तुम ठगा गये हो; अरे, तुम जिस श्यामसुन्दर की बात सुना रहे हो, उसके ह्रदय की बात ही तुम नहीं जानते। तुम कहते हो- ‘श्यामसुन्दर सर्वेश्वर हैं, समस्त संसार के एकमात्र स्वामी हैं।’ तुम्हें पता नहीं, वही सर्वेश्वर, वही अखिल ब्रम्हाण्डनायक अपने-आपको व्रज में आकर भूल गया। तुम्हें एक दिन की बात सुनाती हूँ, तुम चकित रह जाओगे। विश्वास करो, उद्धव! वे मेरे प्रियतम प्राणनाथ हैं। मेरा सब कुछ उनका है और उनका सब कुछ मेरा है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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