प्रेम सत्संग सुधा माला
63- श्रीकृष्ण श्रीगोपिजनों से कुरुक्षेत्र में मिलने पर कहते हैं- ‘गोपियों! तुमने हमें कृतघ्न समझा होगा; क्या करें’ कामकाज की भीड़ में लग गये। देखो, ईश्वर ही प्राणियों का संयोग करता है और वही पूनः वियोग कराता है।.....सौभाग्य की बात है कि ‘हमारे प्रति तुम लोगों का प्रेम निश्चल रहा।’ बस, यह प्रेम ही सचमुच सार है। इस प्रकार का श्रीमद्भागवत् में वर्णित है। पर वास्तव में श्रीकृष्ण गोपीजनों से हटकर भी नहीं हटे थे, श्रीकृष्ण हटते ही नहीं। उद्धवजी के ज्ञान का गर्व शान्त होने पर जब वे श्रीकृष्ण के पास लौटे हैं, उस समय का बड़ा ही सुन्दर वर्णन नन्ददासजी ने किया है- करुणामयी रसिकता है तुम्हरी सब झूठी । पुनि पुनि कहै अहो स्याम! जाय वृंदावन रहिये । सुनत सखा के बैन नैन भरि आए दोऊ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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