प्रेम सत्संग सुधा माला
निरन्तर उनके चरणों में रो-रोकर प्रार्थना करने से ही कुछ अनुभव में, कल्पना में आ सकता है। इसलिये लीला पढ़ें, सुनें, प्रार्थना करें, निरन्तर कृपा की भीख माँगते ही चले जायँ और जहाँ तक बने, अब मन को प्रपंच के कामों से दूर रखने की चेष्टा करें। एकान्त में बैठकर रोयें, श्रीप्रिया-प्रियतम के चरणों में बैठकर उनके सामने रोयें। सच्चा रोना न हो, न सही। झूठे ही जैसा भाव हो, उसी को लेकर रोयें- नाथ! इस नीरस ह्रदय को सरस बनाओ, इस सूखे ह्रदय में अपने प्रेम का एक कण देकर इसे भर दो। प्रभो! अपनी ओर, अपनी कृपा की ओर देखकर ऐसा करो। निश्चय मानिये, बार-बार की प्रार्थना व्यर्थ जा ही नहीं सकती। झूठी को वे अपने कृपा से सच्ची बना देते हैं। 83- इस प्रकार अभ्यास आरम्भ कीजिये- 1) कुंजों का नकशा आपने देखा था। उसमें पहले श्रीविशाखा का कुंज कहाँ है, यह देखकर कुछ क्षण उस समूचे कुंज का चित्र बाँधिये। 2) फिर के कदम्ब के वृक्ष की सुन्दर-से-सुन्दर कल्पना कीजिये। 3) फिर उसकी डालियों को देखिये। 4) फिर उसमें पत्ते लगे हैं, उन्हें। 5) कदम्ब के अत्यन्त सुन्दर फूल हैं, उन्हें। 6) कदम्ब के फूलों पर झुंड-के-झुंड काले भौंरे हैं, उन्हें। 7) कदम्ब की जड़ के नीचे उजला चम-चम करता हुआ संगमरमर का गट्टा है, उसे। 8) संगमरमर का गोलाकार गट्टा चारों ओर फैला है, उस गोलाई का कुछ क्षण चिन्तन कीजिये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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