प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 114

प्रेम सत्संग सुधा माला

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श्रीमद्भागवत में तीन उपाय कहे गये हैं-

1) ऐसी कृपा होने की बाट देखता रहे। अब हुई, अब हुई, अब हो जायगी, कल हो जायगी, इस महीने में तो हो ही जायगी, इस वर्ष में तो निश्चय हो ही जायगी, हो ही जायगी- इस प्रकार प्रतिक्षण जिस प्रकार एक दरिद्र दिवालिया जूए की बाजी जीत जाने की बाट जोहता है तथा सौदा करता ही चला जाता है, वैसे ही भगवत्कृपा की आशा में जो अपने पास है, सब फूँकता चला जाय। समस्त वस्तुओं को भगवत्प्रेम के लिये होम कर कृपा की बाट जोहे। यहाँ के जूए में तो जीत चाहे न भी हो, पर वह कृपा तो आयेगी ही, भगवान् की कृपा की इस बाजी में तो जीत होगी ही।

2) जो सुख-दुःख आकर प्राप्त हो जाय, उसे खूब प्रसन्नता से ग्रहण करे- यह समझकर कि हमारा ही तो किया हुआ है।

3) ह्रदय से, वाणी से, शरीर से निरन्तर भगवान् को नमस्कार करता रहे।

82- जो इस प्रकार जीवन बिताता है, उसे मुक्ति तो उत्तर-अधिकार के रूप में ही मिल जाती है, भगवत्प्रेम भी उसे मिल जाता है।

जब श्रीबनबास मिल्यौ सजनी
तब तीरथ आन गए न गए ॥
जब लाड़िलि लाल कौ नाम लियौ,
तब नाम न आन लए न लए ॥
पद कंज किसोरिहि चित्त पग्यौ,
तब पायन आन नए न नए ॥
जब नैन लगे मन मोहन सौं,
तब औगुन आन भए न भए ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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