चल रही दो में सदा रँगरेलियाँ।
हो रही थीं सुखमयी रस-केलियाँ॥
था नहीं व्यवधान कोई भी कहीं।
एक ही दो बने लीलारत वहीं॥
दो मिटे, फिर, एक ही बस हो गये।
भेद सारे सब तरह के खो गये॥
मैं समायी श्याम में हो श्याम ही।
प्रिया बन मुझमें समाये श्याम भी॥
कौन जाने श्याम हैं या राधिका ?
नहीं अब आराध्य हैं, आराधिका॥
सब तरह घुल-मिल हुए बस, एक हैं।
इन्द्रियाँ, मन, चित्त, मति न अनेक हैं॥
सभी अवयव अंग आपस में मिले।
एक ही प्रिय मधुरिमा से हैं खिले॥
एक थे पहले, अभी भी एक हैं।
यही दोनों की मधुमयी टेक है॥