चल रही दो में -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग बसंत - तीन ताल


चल रही दो में सदा रँगरेलियाँ।
हो रही थीं सुखमयी रस-केलियाँ॥
था नहीं व्यवधान को‌ई भी कहीं।
एक ही दो बने लीलारत वहीं॥
दो मिटे, फिर, एक ही बस हो गये।
भेद सारे सब तरह के खो गये॥
मैं समायी श्याम में हो श्याम ही।
प्रिया बन मुझमें समाये श्याम भी॥
कौन जाने श्याम हैं या राधिका ?
नहीं अब आराध्य हैं, आराधिका॥
सब तरह घुल-मिल हु‌ए बस, एक हैं।
इन्द्रियाँ, मन, चित्त, मति न अनेक हैं॥
सभी अवयव अंग आपस में मिले।
एक ही प्रिय मधुरिमा से हैं खिले॥
एक थे पहले, अभी भी एक हैं।
यही दोनों की मधुमयी टेक है॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः