कोटि-कोटि सुन्दरियाँ हैं गुण-शील-रूप-सौन्दर्य-निधान।
उन्हें छोड़, तुम मुझे निरन्तर देते रहते शुचि रस-दान॥
निश्चय ही मिलता होगा तुमको इससे अतिशय आनन्द।
मुझसे बिछुड़, हो रहे तुम उस सुखसे वचित, हे स्वच्छन्द !
विरह-वेदनासे यदि, प्रियतम ! मेरे चले जायँगे प्राण।
वचित सदा रहोगे फिर तुम इस सुखसे, प्राणोंके प्राण !
करुण विलाप करोगे फिर तुम मेरे लिये नित्य, नँद-लाल !
रह जायेंगे प्राण तो दुःख न होगा तुम्हें, रमण ! उर-माल !
मिलकर प्राण बचा लो मेरे अभी तुरंत परम सुकुमार !।
करो शीघ्र आनन्द-लाभ फिर, प्रियतम हे ब्रजराज-कुमार !॥
तुम्हें तनिक सुख होता तो रहता न मुझे प्राणोंका मोह।
कोटि-कोटि हैं प्राण निछावर तुमपर, परानन्द-संदोह !