कभी मत मिलो, पूछो न कभी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

Prev.png
राग जंगला - ताल कहरवा


कभी मत मिलो, पूछो न कभी तुम मुझसे कुछ मन की बात।
भूलो, भूले रहो सदा ही अति नगण्य मुझको दिन-रात॥
पर मैं कभी न भूलूँ तुमको, करती रहूँ याद निर्मल।
नित्य देखती रहूँ तुम्हारा मैं शुचि सुन्दर वदन-कमल॥
ख़ाली करूँ हृदय को सबसे, खूब सजाऊँ तव अनुकूल।
सदा बसाये रखूँ तुम्हें उसमें, तुम चाहे हो प्रतिकूल॥
बढ़ता रहे उत्तरोत्तर मेरा यह केवल एकाङ्गी प्रेम।
यही बने सर्वत्र सदा ही मेरा वाञ्छित योग-क्षेम॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः