प्रेम सुधा सागर पृ. 296

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
तैंतालीसवाँ अध्याय

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परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण तो चाहते ही थे कि इनसे दो-दो हाथ करें। इसलिये उन्होंने चाणूर की बात सुनकर उसका अनुमोदन किया और देश-काल के अनुसार यह बात कही - ‘चाणूर! हम भी इन भोजराज कंस की वनवासी प्रजा हैं। हमें इनको प्रसन्न करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिये। इसी में हमारा कल्याण है। किन्तु चाणूर! हम लोग अभी बालक हैं। इसलिये हम अपने समान बल वाले बालकों के साथ ही लड़ने का खेल करेंगे। कुश्ती समान बलवालों के साथ ही होनी चाहिये, जिससे देखने वाले सभासदों को अन्याय के समर्थक होने का पाप न लगे।'

चाणूर ने कहा- 'अजी! तुम और बलराम न बालक हो और न तो किशोर। तुम दोनों बलवानों में श्रेष्ठ हो, तुमने अभी-अभी हज़ार हाथियों का बल रखने वाले कुवलयापीड को खेल-ही-खेल में मार डाला। इसलिये तुम दोनों को हम-जैसे बलवानों के साथ ही लड़ना चाहिये। इसमें अन्याय की कोई बात नहीं है। इसलिये कृष्ण! तुम मुझ पर अपना ज़ोर आजमाओ और बलराम के साथ मुष्टिक लड़ेगा।

इन्होंने सात दिनों तक एक ही हाथ पर गिरिराज गोवर्धन को उठाये रखा और उसके द्वारा आँधी-पानी तथा वज्रपात से गोकुल को बचा लिया। गोपियाँ इनकी मन्द-मन्द मुस्कान, मधुर चितवन और सर्वदा एकरस प्रसन्न रहने वाले मुखारविन्द के दर्शन से आनन्दित रहती थीं और अनायास ही सब प्रकार के तापों से मुक्त हो जाती थीं। कहते हैं कि ये यदुवंश की रक्षा करेंगे। यह विख्यात वंश इनके द्वारा महान समृद्धि, यश और गौरव प्राप्त करेगा। ये दूसरे इन्हीं श्यामसुन्दर के बड़े भाई कमलनयन श्रीबलरामजी हैं। हमने किसी-किसी के मुँह से ऐसा सुना है कि इन्होंने ही प्रलम्बासुर, वत्सासुर और बकासुर आदि को मारा है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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