ह्याँ तुम कहत कौन की बातै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


 
ह्याँ तुम कहत कौन की बातै।
अहो मधुप हम समुझतिं नाही फिरि बूझति हैं तातैं।।
को नृप भयौ कंस किन मारयौ, को वसुद्यौ सुत आहि।
ह्याँ जसुदासुत परम मनोहर, जीजतु है मुख चाहि।।
दिन प्रति जात धेनु ब्रज चारन, गोप सखनि कै संग।
बासर गत रजनी मुख आवत, करत नैन गति पग।।
को अविनासी अगम अगोचर, को विधि वेद अपार।
‘सूर’ वृथा बकवाद करत कत, इहि ब्रज नंदकुमार।।3626।।

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