हौ समीप लालन के अब -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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हौ समीप लालन के अब घन बरस्यौ बयौ न करै।
चहुँ दिसि बीदर उलहि आए है चहुँ दिसि बिज्जु छटा फहरै।।
नान्हीं नान्हीं बूँदनि मेघ रैनि दिन सरित उमड़ि जग नीर भरै।
'सूरदास' गिरिधर मैं पाए मन्मथ दोउ कर मीजि मरै।। 114 ।।

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