हौ इन मोरनि की बलिहारी।
जिनकी सुभग चद्रिका माथै, धरत गोवरधनधारी।।
बलिहारी वा वाँस बस की, बसो सी सुकुमारी।
सदा रहति है कर जु स्याम कै, नैकहूँ होति न न्यारी।।
बलिहारी वा गुंज जाति की, उपजी जगत उज्यारी।
सुंदर हृदय रहत मोहन कै, कबहूँ टरन न टारी।।
बलिहारी कुल सैल सरित जिहिं, कहत कलिंददुलारी।
निसि दिन कान्ह अंग आलिगन आपुनहूँ भई कारी।।
बलिहारी वृंदावन भूमिहि, सुतौ भाग की सारी।
‘सूरदास’ प्रभु नाँगे पाइनि, दिन प्रति गैया चारी।।4054।।