हौं वारी रे मेरे तात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



हौं वारी रे मेरे तात।
काहे कौं लाल पराए घर कौ, चोरि–दधि माखन खात।
गहि गहि पानि मटुकिया रीति, उरहन कैं मिस आवत-जात।
करि मनुहार, कोसिबे कैं डर, भरि-भरि देति जसोदा मात।
फूटी चुरी गोद भरि ल्‍यावैं, फाटे चोर दिखावैं गात।
सूरदास स्‍वामी की जननी, उर लगाइ हँसि पूछति बात।।332।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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