हौं गई जमुन-जल साँवरे सौं मोही।
केसरि को खौरि, कुसुम की दाम अभिराम, कनक-दुलरि कंठ, पीतांबर खोही।।
नान्ही-नान्ही बूँदनि मैं, ठाढ़ी गावै मीठी तान, मैं तो लालन की छवि, नैंकहू न जोही।
सूर स्याम मुरि मुसुक्यानि, छबि अँखियनि रही हौं न जान्यौ री कहाँ ही और को ही।।1400।।