हो हो हो हो होरी, करत फिरत ब्रज खोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


हो हो हो हो होरी, करत फिरत ब्रज खोरी, मोहन हलधर जोरी, सुवन नंद कौ री।।
ग्वाल सखा सँग ढोरी, लिये अबीर कर झोरी, नारि भजत जिहि जोरी, दाँव लेत दौरी।।
इक गावत है घमारि, इक एकनि देत गारि, दई सबनि लाज डारि, बाल पुरुष तोरी।
सौंधे अरगजा कीच, जहाँ तहाँ गलिनि बीच, एक एक ऊँच नीच करत रंग झोरी।।
इक उघटति इक नृत्यति, एक तान लेति उपज, इक दै करताल हरषि गावति है गोरी।
'सूरदास' प्रभु कौ सुख निरखि हरष ब्रजललना सुरललना सुरनि सहित विथकित भईं बौरी।।2891।।

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