हो चाहे तुम सर्वदोषमय, दोषरहित, गुणमय, गुणहीन।
निर्मल मन अति हो चाहे, हो चाहे मन अत्यन्त मलीन॥
प्यार करो, चाहे ठुकराओ, आदर दो, चाहे दुत्कार।
तुम ही मेरे एक प्राण-धन, तुम ही मेरे प्राणाधार॥
कोटि गुना हो कोई तुमसे बढक़र सुघड़ रूप-गुण-धाम।
मैं तो नित्य तुम्हारी ही हूँ, नहीं किसी से कुछ भी काम॥
फूट जायँ वे पापिनि आँखें, बहरे हो जायें वे कान।
देखें, सुनें भूलकर भी जो अन्य किसी का रूप, बखान॥
निन्दा करो पेट भर चाहे, मैं नित तुम्हें सराहूँगी।
दारुण दुःख सदा दो तो भी मैं तुम्ही को चाहूँगी॥
बदतर से बदतर हालत में भी तुमको न उलाहूँगी।
मरकर भी तुमको पाऊँगी, संतत प्रेम निबाहूँगी॥
नहीं कभी उपजेगी मेरे मन में अन्य किसी की चाह।
नरकों की, दुर्गति की कुछ भी मुझे नहीं होगी परवाह॥
एक तुम्हारा ही बस, होगा मुझ पर सदा पूर्ण अधिकार।
एक तुम्हीं बस, नित्य रहोगे मेरे परम जीवनाधार॥