होरी में ग‌ए हार सकल खल-दल-संहारी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग काफी - ताल दीपचंदी


होरी में ग‌ए हार सकल खल-दल-संहारी॥
सखी-सहचरी सब कौं लै सँग, भरि रस-रँग पिचकारी।
मधुर बदन, कोमल सब तन पर हेरि-हेरि कै मारी॥
रँगीली कीर्ति-कुमारी॥
लाल कपोल गुलाल लपेटे, दृग सुरभित जल डारी।
भाजि चले मन-मोहन सोहन पौंछत नयननि बारी॥
हँसी सखि दै कर-तारी॥
मुरली कर सौं परी धरनि पर, मोर-सिखा महि डारी।
भ‌ए स्रमित, मृदु चरन डगमगे, बैठि ग‌ए मन मारी॥
घेरि लि‌ए सखिन मुरारी॥
बोलीं बचन यंग सखि मृदु हँसि-’बड़े बीर गिरिधारी !
सहि न सके नारी-कोमल-कर-कंजनि की पिचकारी॥
लाज सब कहाँ बिसारी’॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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