होरी खेलत हैं गिरधारी -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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फाग लीला


होली झझोटी




होरी खेलत हैं गिरधारी ।।टेक।।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो, संग जुवति ब्रजनारी।
चंदन केसर छिरकत मोहन, अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठि गुलाल लाल चहुँ, देत सबन पै डारी।
छैल छबीले नवल कान्ह सँग, स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तँह, दै दै कल करतारी।
फाग जु खेलत रसिक साँवरो, बाढ्यो रस ब्रज भारी।
मीरां के प्रभु गिरधन नागर[1], मोहन लाल बिहारी ।।177।।[2]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मिले मन, मिलिया
  2. लँगर = नटखट वा ढीठे ( कृष्ण )। (देखो- ‘सूरश्याम दिन दिन लँगर भयो, दूरि करौं लँगरैया’ - सूरदास)। भरोसे = आसरे पर, विश्वास करके। नार = नारि, स्त्री। जोर = मिला कर। रीत = रीति, मर्यादा। टारे = दूर करने पर भी, विस्मरण करने पर भी।

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