होरी के खिलार भावते यौ ही जान न दैहौ।
बागे वीर जो बनि आये जागे है भाग हमारे नैननि भरि राखौ फगुवा न लैहौ।।
न्यारे ह्वै मुख माडिहौ अँखिया जु अँजैहौ। बीरी पलटि न लेहु और सौ काहू की प्यारे औरै भरन न दैहौ।
न्यारे ही खिलैहौ। लीनी मूरति मधुरी हँसि हृदे लगैहौ।
'सूरदास' मदन मोहन सँग हिलि मिलि दोऊ जल की तरंग जैसै जलही समैहौ।। 124 ।।