है हरि नाम कौ आधार -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग केदारौ



है हरि नाम कौ आधार।
और इहिं कलिकाल नाहीं, रह्यौ बिधि-ब्यौहार।
नारदादि सुकादि मुनि मिलि, कियौ बहुत बिचार।
सकल स्रुति-दधि मथत पायौ, इतोई घृत-सार।
दसौं दिसि तैं कर्म रोक्यौ, मीन कौं ज्यौं जार।
सूर हरि कौ सुजस गावत, जाहि, मिटि भव-भार।।4।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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