है कोउ ऐसी भाँति दिखावै।
किंकिन सब्द चलत धुनि, रुनझुन ठुमुकि ठुमुकि गृह आवै।।
कछुक बिलास बदन की सोभा, अरुन कोटि गति पावै।
कचन मुकुट कंठ मुक्तावलि, मोर पंख छवि छावै।।
धूसर धूरि अग अँग लीन्हे, ग्वाल बाल सँग लावै।
'सूरदास' प्रभु कहति जसोदा, भाग बड़े तै पावै।।3010।।