हे दयामय दीनबन्धो -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

Prev.png
राग साहना - ताल देवरा


हे दयामय! दीनबन्धो! दीन को अपना‌इये।
डूबता बेड़ा मेरा मझदार पार लँघा‌इये॥
नाथ! तुम तो पतितपावन, मैं पतित सबसे बड़ा।
कीजिये पावन मुझे मैं शरणमें हूँ आ पड़ा॥
तुम गरीब-निवाज हो, यों जगत सारा कह रहा।
मैं गरीब अनाथ दुःख-प्रवाहमें नित बह रहा॥
इस गरीबीसे छुड़ाकर कीजिये मुझको सनाथ।
तुम-सरीखे नाथ पा, फिर क्यों कहाऊँ मैं अनाथ ?॥
हो तृषित आकुल अमित प्रभु! चाहता जो बूँद-नीर।
तुम तृषाहारी अनोखे उसे देते सुधा-क्षीर॥
यह तुम्हारी अमित महिमा सत्य सारी है प्रभो!।
किसलिये मैं रहा वञ्चित फिर अभीतक हे विभो!॥
अब नहीं ऐसा उचित प्रभु! कृपा मुझपर कीजिये।
पापका बन्धन छुड़ा नित-शान्ति मुझको दीजिये॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः