हेली म्‍हांसूं हरि विनि रहो न जाय -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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परीक्षा

राग पहाड़ी


हेली म्‍हांसूँ हरि विनि रहो न जाय ।। टेक।।
सास लड़ै मेरी नन्‍द खिजावै, राणा रह्य रिसाय ।
पहरो[1] भी राख्‍यो चौकी बिठारयो, ताला दियो जड़ाय ।
पूर्ब[2] जनम की प्रीत पुराणी, सो क्‍यूँ छोड़ी जाय ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, और न आवे म्‍हाँरी दाय ।।46।।[3]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. चौकी मेलौ भले ही सजनी, ताला द्यो न जड़ाइ ।
  2. पूर्ब जन्‍म की प्रीत हमारी, सो कहाँ रहे लुकाइ ।
  3. हेली = अरी। म्हाँसूँ = हमसे, मुझसे। खिवाजै = चिढ़ाती रहती है। पहरो... बिठारयो = रखवाली के लिये पहरेदार नियुक्त कर दिये हैं। जड़ाय = डलवाया है। म्हाँरी दाय = मेरे पसंद में।

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