हेरी देत चले सब बालक।
आनँद सहित जात हरि खेलत, संग मिले पसु-पालक।
कोउ गावत, कोउ बेनु बजावत, कोउ नाचत कोउ धावत।
किलकत कान्ह देखि यह कौतुक, हरषि सखा उर लावत।
भली करी तुम मोकौं ल्याए, मैया हरषि पठाए।
गोधन-बृंद लिए ब्रज-बालक, जमुना-तट पहुँचाए।
चरतिं धेनु अपनैं अपनैं रँग, अतिहिं सधन वन चारौ।
सूर संग मिलि गाइ चरावत, जसुमति कौ सुत बारौ।।611।।