हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 95

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
हित वृन्‍दावन

कुंज-कुंज सैन सुखद, मैन ऐन कुंज-कुंज,
कुंज-कुंज संगम संजोग सुख निशानी कौ।
कुंज-कुंज सज्जित श्रृंगार सौंज नई-नई,
कुंज-कुंज भोग जोग सौंधौ मनमानी कौ।।
कुंज-कुंज मंडल-मणि रास तत्त थेइ-थेइ,
कुंज-कुंज गाानतान तरलित सुरसानी कौ।
कुंज-कुंज वनितागन जूथनि अभिराम धाम,
झलमलात वृन्‍दावन वृन्‍दावन-रानी कौ।।[1]

राधावल्‍लभीय रसोपासना वृन्‍दावन-रस की उपासना है। वृन्‍दावन-रति ही वृन्‍दावन-रस के रूप में आस्‍वादित होती है वृन्‍दावन-रति, वास्‍तव में, प्रेम-रति है। प्रेम के प्रति प्रेम है श्री वृन्‍दावन-रस प्रेम-रस है। 'प्रेम' के प्रति प्रेम के स्‍थान में ‘वृन्‍दावन’ शब्‍द के प्रयोग का हेतु यह है कि यहाँ रसिक की रति उस एकरस और नित्‍य नूतन प्रेम के प्रति है जो वृन्‍दावन कहलाता है। रसिक श्‍याम-श्‍यामा हैं, सखी गण हैं, उपासक हैं। तीनों प्रेम के इसी स्‍वरूप के रसिक हैं। वृन्‍दावन में ही वह प्रीति-लता उत्‍पन्न है जिस में रंग-रूप के दो फूल श्‍याम श्‍यामा लगे हैं। यह प्रीति-लता श्‍याम-श्‍यामा का ही अवलंब नहीं, सखी-गण और सखी-भावापन्न रसिक-उपासकों का भी है। वृन्‍दावन से रति करके ही रसिक-उपासक वहाँ के सहज प्रेम विलास का आस्‍वाद कर सकता है, उस में प्रविष्‍ट हो सकता है।

श्री प्रबोधानंद सरस्‍वती ने तीन वृन्‍दावनों का उल्‍लेख किया है। पहिला है, ‘गोष्‍ठ वृन्‍दावन ‘ जहाँ श्री कृष्‍ण गोचारण करते हैं। दूसरा है, गोपियों का क्रीड़ा-स्‍थल वृन्‍दावन , जहाँ ब्रज-गोपिकाओं के साथ भगवान रास-विलास करते हैं। तीसरा और इन दोनों से विलक्षण, अत्‍यन्‍त आश्‍चर्यमय वृन्‍दावन वह है जहाँ श्री राधा की निकुंज-वाटी है। यह उस रति का सहज रूप है जो अत्‍यन्‍त शुद्ध और पूर्ण है। सर्वथा स्‍व-सुख-वासना शून्‍य होने के कारण वह अत्‍यन्‍त शुद्ध है और सर्वथा समृद्ध होने के कारण वह अत्‍यन्‍त पूर्ण है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वृन्‍दावनाष्‍टक

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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