श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित वृन्दावन
कुंज-कुंज सैन सुखद, मैन ऐन कुंज-कुंज, राधावल्लभीय रसोपासना वृन्दावन-रस की उपासना है। वृन्दावन-रति ही वृन्दावन-रस के रूप में आस्वादित होती है वृन्दावन-रति, वास्तव में, प्रेम-रति है। प्रेम के प्रति प्रेम है श्री वृन्दावन-रस प्रेम-रस है। 'प्रेम' के प्रति प्रेम के स्थान में ‘वृन्दावन’ शब्द के प्रयोग का हेतु यह है कि यहाँ रसिक की रति उस एकरस और नित्य नूतन प्रेम के प्रति है जो वृन्दावन कहलाता है। रसिक श्याम-श्यामा हैं, सखी गण हैं, उपासक हैं। तीनों प्रेम के इसी स्वरूप के रसिक हैं। वृन्दावन में ही वह प्रीति-लता उत्पन्न है जिस में रंग-रूप के दो फूल श्याम श्यामा लगे हैं। यह प्रीति-लता श्याम-श्यामा का ही अवलंब नहीं, सखी-गण और सखी-भावापन्न रसिक-उपासकों का भी है। वृन्दावन से रति करके ही रसिक-उपासक वहाँ के सहज प्रेम विलास का आस्वाद कर सकता है, उस में प्रविष्ट हो सकता है। श्री प्रबोधानंद सरस्वती ने तीन वृन्दावनों का उल्लेख किया है। पहिला है, ‘गोष्ठ वृन्दावन ‘ जहाँ श्री कृष्ण गोचारण करते हैं। दूसरा है, गोपियों का क्रीड़ा-स्थल वृन्दावन , जहाँ ब्रज-गोपिकाओं के साथ भगवान रास-विलास करते हैं। तीसरा और इन दोनों से विलक्षण, अत्यन्त आश्चर्यमय वृन्दावन वह है जहाँ श्री राधा की निकुंज-वाटी है। यह उस रति का सहज रूप है जो अत्यन्त शुद्ध और पूर्ण है। सर्वथा स्व-सुख-वासना शून्य होने के कारण वह अत्यन्त शुद्ध है और सर्वथा समृद्ध होने के कारण वह अत्यन्त पूर्ण है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वृन्दावनाष्टक
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज