श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित वृन्दावन
रस-रूपा श्री राधा का यह अद्भुत रस-धाम उन्हीं की कृपा से उपासक के दृष्टि-पथ में आता है। हिताचार्य ने अपने एक पद में लीलागान से पूर्व वृन्दावन को प्रणाम किया है और श्री राधा की कृपा के बिना उसको सबके मनों के लिये अगम्य बताया है। प्रथम यथामति प्रणऊँ वृन्दावन अतिरम्य। श्री राधा और वृन्दावन का इस प्रकार का सम्बन्ध देख कर हितप्रभु के शिष्य श्री प्रबोधानंद सरस्वती ने अपने शतक में इन दोनों की प्राप्ति को एक दूसरे के आश्रित बताया है। वे कहते है-‘जब तक श्री राधा के पद-नख-मणि की चन्द्रिका का आविर्भाव नहीं होता, तब तक मन-चकोरी को मोद प्राप्त नहीं होता, और जब तक वृन्दावन भूमि में गाढ़-निष्ठा नहीं होती तब तक श्री राधा-चरणों की करुणा का पूर्ण उदय नहीं होता।' यावद्राधा पदनखमणी चन्द्रिका नाविरास्ते, |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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