हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 77

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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विशुद्ध प्रेम का स्वरूप

प्रेम के इस स्‍वाभाव के कारण ही भक्ति-मार्ग में अनन्‍यता के सिद्धान्‍त का इतना गौरव है। एक श्‍याम सुन्‍दर ही नहीं, श्री राधा, सहचरीगण एवं वृन्‍दावन सम्‍पूर्णतया एक दूसरे के अधीन एवं अनन्‍य-गति हैं। इनकी अधीनता प्रेम की अधीनता है और प्रेम की अधीनता ही उसका स्‍वामित्व, एवं उसकी पराजय ही विजय होती है। प्रेम-रस के रसिक ही नेहखेत की इस रीति को जानते हैं कि यहाँ हारने पर ही जीत मिलती है।

जिनि कै है यह प्रेम रस, सोई जानत रीति।
जो हारै तौ पाइये, नेह-खेत में जीति।।[1]

प्रियतम के सर्वथा अधीन रहकर उसके मुख को अपना सुख समझने वाला प्रेम परमोज्‍जवल होता है। प्रेम में इन दोनों वृत्तियों का प्रकाश होते ही सौन्‍दर्य की अनंत रेखायें फूट निकलती हैं और इन सौन्‍दर्य-रेखाओं के द्वारा नित्‍य बिहार की ललित लीलाओं का निर्माण होता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्री ध्रुवदास-प्रेमावाली

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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