श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
द्विदल-सिद्धान्त
सुनियत यहाँ दूसर कोउ नाहीं। अन्यत्र वे कहते हैं, ‘प्रेम में जैसे प्रेमी और प्रेम-पात्र एक प्राण, दो देहवाले होते हैं, श्रृंगार-रस में वैसी ही स्थति संयोग और वियोग की है।’ बात को स्पष्ट करने के लिये उन्होंने नायक को विरह-रूप और नायिका को संयोग-रूप बतलाया है। ‘श्याम विरह है और गोरी संयोगिन है। विचित्रता यह है कि श्याम और गौर-वियोग और संयोग-अदल-बदल होते रहते हैं। कभी संयोग विरह-जैसा प्रतीत होता है, और कभी विरह संयोग-जैसा प्रतीत होता है। दृष्टि न आने पर ‘श्याम’ कहलाते हैं और जब दृष्टि में आने लगते हैं तब ‘गोरी’ कहलाते हैं। गौर-श्याम इस प्रकार मिलकर रहते हैं कि न तो उनको संयुक्त कहा जा सकता है और न वियुक्त ही। श्री वृन्दावन श्रृंगार-रस है और गौर-श्याम संयोग-वियोग हैं। त्यौं सिंगार बिछुरन मिलन एक प्राण दो देह। विरह नाम नायक कौ धरयौ, नाम संयोग नायिका करयौ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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