श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त-हित की रस-रूपता
वृन्दावन रस मोहि भावै हो। अन्यत्र उन्होंने कहा है- ‘इस रस का पान करके मेरा मन नवधाभक्ति एवं भागवत कथा की रति से ऊबने लगा है। इस रस के उपासक ‘अनन्य’ समुदाय की रहनि-कहनि सबसे भिन्न है।’ यहि रस नवधाभक्ति उबीठी रति भागौत कथा की। इस नित्य–निष्पन्न रस का अनुभव केवल कृपालभ्य माना गया है। प्रेमदेव की जिस पर सहज कृपा होती है वही इसके दर्शन करता है। प्रेम की सहज कृपालुता प्रसिद्ध है। कृपा लाभ होने पर उसी प्रेम के अन्दर, जिसका अनुभव जीव-मात्र को है, वह झरोखा खुल जाता है जिसने प्रेम के वास्तविक रूप को बन्द कर रखा है। ‘सहज कृपा के बल से खुले हुए प्रेम-झरोखे से ही इस नित्य–निष्पन्न रस के दर्शन होते हैं। कृपा के अतिरिक्त उस रस की प्राप्ति का अन्य कोई साधन नहीं है। यह रस सझुनि कौं कछू नाहिन आन उपाय। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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