हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 498

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

किंतु पूर्व संस्कारों के बल से अथवा महानुभावों के अनुग्रह से जिनको अपने इष्ट को चरित्रों से अतिरिक्त अनय कुछ अच्छा नहीं लगता, उनको ग्रन्थकार ने नमस्कार किया है'।[1] अध्वविनिर्णय पर प्रियादास जी (पटना वाले) की विस्तृत संस्कृत टीका प्राप्त है।

श्री व्रजलाल गोस्वामी- इनका जन्म सं. 1715 माघ कृष्णा द्वितीया को हुआ था। यह संस्कृत और ब्रजभाषा दोनों में अच्छी रचना करते थे। संस्कृत में इनकी तीन रचनाएं मिलती हैं- सेवा विचार, प्रेम चन्द्रोदय नाटक और मनः प्रबोध।

(1) 'सेवा विचार किंवा सेवा शतक' सेवा-संबंधी ग्रन्थ है। इसकी रचना सं. 1755 में हुई है। इसमें उपासना संबंधी अनेक बातों का समावेश हुआ है। उक्त ग्रंथ में से अनेक उद्धरण पीछे दिये जा चुके हैं। इस पर स्वयं ग्रंथकर्ता की और श्री रंगलाल गोस्वामी की संस्कृत टीकाएं प्राप्त हैं।

(2) 'प्रेम चन्द्रोदय नाटक' की रचना सं. 1745 में हुई है। इसमें राजा अज्ञान-प्रपंच और राजा प्रेमचन्द्र की सेनाओं के बीच के युद्ध का वर्णन है और अन्त में राजा प्रेमचन्द्र की विजय दिखलाई गई है। अज्ञान-प्रपंच का 'खल' मंत्री है, कलि परम बन्धु है, अधर्म सेनापति है, क्रोध प्रभृति छः प्रकार की सेनायें हैं; स्तेय, वध, अनृत, राग, द्वेष आदि कुमार प्रधान हैं और म्लेच्छ देश राजधानी है। प्रेमचन्द्र राजा का मंत्री सत्संग है, विज्ञान बन्धु हैं, धर्म सेनापति है; श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन, दांस्य, सख्य और आत्मनिवेदन नामक नौ कुमार प्रधान योद्धा है। वस्तु-विचार, सन्तोष, ज्ञान और विनय नामक शौर्यशाली मंत्री पुत्र हैं एवं क्षमा और मैत्री नामक मन्त्री की दो स्वरूपवती कन्यायें हैं। शम, दम, ध्यान, होम, जप, स्वाध्याय, संयमादि सेनाचर है; ब्राह्मण और वैष्णवगण सहायक हैं; मथुरा, वृन्दावन, काशी और प्रयाग राजधानी हैं और उत्कल प्रभृति देश विश्राम स्थान है।

नाटक की वस्तु का विकास द्वितीय अंक से होता है। सेनानायक लोभ अयोध्या नगरी पर आक्रमण करके वहाँ के सेनापति सन्तोष को मार भगाता है। अयोध्या निवासी प्रेमचन्द्र के पास भेजते हैं। मार्ग में दक्षिणाचार्य की भेंट विष्णु-भक्ति द्वारा प्रेषित दूत सत्याचार्य के साथ होती है। सत्याचार्य उसको सान्त्वना देते हुए राजा प्रेमचन्द्र के पास ले जाते हैं। वहाँ दक्षिणाचार्य गंगातीरवासी और रेवातीरवासी अनेक व्यक्तियों को अत्यन्त दीन-हीन स्थिति में राजा के पास आता देखता है। राजा प्रेमचन्द्र इस आकस्मिक उत्पात का वृत्तान्त सुनकर अपने मंत्री सत्संग के साथ मंत्रणा करते हैं। मंत्री उनको इस महा संकट काल में राधा मधुसूदन की आराधना करने का परामर्श देता है। 

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यस्मै संस्कारवशतो यद्वा महदनुग्रहात्। न रोचते निजेष्टस्य वृत्तादनयन्नमामि तम्।। (अ. वि. 46)

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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