हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 491

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

गता दूरे गावो दिन मपि तुरीयांशमभजद्,
वयं दातुंक्षातास्तव च जननी वर्त्मनयना ।
अकस्मात्तूष्‍णी के सजल नयने दीन वदने,
लुठत्यस्यां भूमौ त्वयि न हि वयं प्राणिणिषव ।।[1]

श्री प्रबोधानंद ने इस ग्रंथ में स्‍वयं को ‘रसिक सरस्‍वती’ लिखा है, और अपने गीतों को उन रसिकों के लिये अवश्‍य गये बतलाया है, जिनके हृदय में ‘वृंदावन रस’ के आस्‍वाद की लालसा है।[2] नित्‍य विहार के उपासको में ‘रसिक’ शब्‍द आरम्‍भ से ही बहुत प्रचलित है और अत्‍यंत गौरवयुक्‍त माना जाता है। हित प्रभु ने भी एक पद में अपने नाम के साथ रसिक शब्‍द लगाया है, ‘जै श्री हितहरिवंश रसिक सचु पावत देखत मधुकर केलो’। नाभा जी ने अपने छप्‍पय में स्‍वामी हरिदास जी की ‘छाप’ ही ‘रसिक’ बतलाई है, ‘रसिक छाप हरिदास की’।

ग्रंथ के अंत में सरस्‍वती पाद ने अपने गान को ‘हितसार’ बतलाया है, ‘इति हितसार सरस्‍वती गीतं, जनयतु कञ्चन भाव मधीतम् ।’

प्रबोधानंद की तीसरी रचना निकुंज विलासस्‍तव है। बत्तीस श्लोकों के इस स्‍तोत्र में श्‍यामाश्‍याम की निकुल-लीला का वर्णन राधावल्‍लभीय परिपाटी से किया गया है। गौड़ीय साहित्‍य में य‍ह स्‍तोत्र निकुंजरहस्‍य-स्‍तव के नाम से प्रसिद्ध है और श्री रूप गोस्‍वामी रचित माना जाता है। श्री जीव गोस्‍वामी ने श्री सनातन और रूप गोस्‍वामी के ग्रंथों की सूची दी है। उसमें श्री रूप गोस्‍वामी के तेरह ग्रंथ गिनाये गये हैं। भक्ति रत्‍नाकर में श्री रूप गोस्‍वामी के 17 ग्रंथों के नाम दिये हुये हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (सु. नि. 228)
  2. रसिक सरस्‍वति गीतमहाद्भुत् राधारूप रहस्‍यं, वृंदावनरस लालस मनसा मिदसुपगेयमवश्‍यम्। (सं० मा० 2-11)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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