हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 490

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

कुछ श्‍लोकों में राधा सुधानिधि की पंक्तियां रखी मिलती है।[1] राधा सुधानिधि की ही भाँति इस ग्रन्थ में श्‍यामसुन्दर से उनकी प्रिया के चरण प्रदान करने को प्रार्थना की गई है।[2]

अनंग जय मङ्गलध्‍वनित किंकिणी डिंडिम,
स्तानदि वर लाड़नैर्नखरदंत घातैर्युत:।
अहो चतुर नागरी नव किशोरयोर्मजुले,
निकुंज निलयाजिरे रतिरणोत्सवो जूम्भते ।।[3]

गता दूरे गावो दिनम‍पि तुरीयाशमभजद्,
वयं क्षुतंक्षामा: स्मस्तव: च जननी वर्त्मनयना ।
अकस्मात्तूष्‍णीके सजल नयने दीन वदने,
त्वयि त्यकत्वा खेलां नहि-नहि वयं प्राणिणिषव ।।[4]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अर्थ श्री गोविन्द विकसदरविन्देक्षणा लसत्, कृपादृष्टया पूर्ण प्रणयरस-वृष्‍ट्यास्‍नपपति। स्थिता नित्‍यं पार्श्‍वे विविध परिचर्यैक चतुरा, न केषा चिद्द्दश्‍यं रसिक मिधुनं साश्रित वती ।। (सं० मा० 3-13) दुकूलं विभ्राणामथ कुच तटे कंचुक पटं, प्रसादं स्‍वामिन्‍या: स्‍व करतल दत्त प्रणयत:। स्थितां नित्‍यं पार्श्वे विविध परियर्यैक चतुरा, किशोरीमाल्‍मानं किमिहं सुकुमारी ने कलये ।। (रा० नि० 42)
  2. माधव रसमय परमानंद। निऊ दायिता पददास्‍य रसे मामभिषेचय सुखकंद ।। (सं. मा.31) आर्नदमूर्ते कुरु! निज वल्‍लभाया:, पादारविंदे कुरु, किंकरी माम्। (सं० मा० 3-12)
  3. (सु० नि० 224)
  4. (सं० मा० 4-8)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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