श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
प्रबोधानंद जी ने श्री हिताचार्य की वंदना कही की न हो, सो भी बात नहीं है। उनका एक श्री हरिवंशाष्टक प्राप्त है जिस पर अठारहवीं शती की एक संस्कृत टीका उपलब्ध है। इस अष्टक से सरस्वतीपाद की श्रीहित प्रभु के प्रति अगाध श्रद्धा और उपकार्य बुद्धि प्रगट होती है। शतकों मे लगे हुए श्री चैतन्य-स्मरणों में से कई में यह कहा गया है कि कर्ता को वृन्दावन तत्त्व की प्राप्ति श्री चैतन्य से हुई है।[1] किंतु हम देख चुके हैं कि कवि कर्णपुर कृत, ‘आनंद वृन्दावन चम्पू’ में वृन्दावन संबंधी भिन्न दृष्टिकोण ग्रहण हुआ है और यही स्थिति श्री सनातन गोस्वामी रचित वृहद् भागवतामृत तथा अन्य प्रारंभिक गौड़ीय ग्रन्थों की है। श्री प्रबोधानंद की रचनाओं के पाठ के संबंध में अभी बहुत अनुसंधान अपेक्षित है और तभी उपर्युक्त दो विकल्पों में से कोई एक स्थिर हो सकेगा । प्रबोधानंद जी का दूसरा ग्रन्थ संगीत-माधवम् है। गीत-गोविंद की भाँति यह गीति-काव्य है। इस में राधा-सुधानिधि के दो श्लोक थोडे़ से परिवर्तन के साथ उद्धृत मिलते है।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ देखिये, 2-65 और 16-2, 3 वृ० श०
- ↑ अहो मुखरनूपुर प्रकर किंकिगी डिंडिम, स्तनादि वरताड़नैर्नखरदंत घातैर्युत:। सुदुर्द्ध रमदान्घयो र्नवनिकुन्ज पुन्जाजिरे तदद्भुत किशोरयो: सुरत संगरोजृम्भते ।।(सं० मा० 2-6)
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