श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
गोधन देखि परमसुख पायौ, पाछैं ठोर उदास जनायौ । अपनी कूटी में प्रात:काल जब उनकी आंख खुलीं तब उनके संशय छिन्न हो चुके थे और नित्य बिहार में उनकी सहज प्रतीति जाग्रत हो चुकी थी। वे दोडे़ हुए परमानंददास जी के पास गये ओर उनको मानसरोवर के अपने अनुभव सुनाकर उनसे नित्य विहार-रस दान करने की प्रार्थना की। परमानंददास जी ने इस रस का दाता श्री हिताचार्य को बतलाया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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