श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
वृन्दावन में इन्होंने सब ठाकुरद्वार (मन्दिर) देखे और सब आचार्यों से मिले किंतु इनका मन कहीं जमा नहीं। सबही ठाकुर द्वारे देखे, और सर्व आचारज पेखे । वृन्दावन में एक मास रहने के बाद वे मथुरा चले गये ओर वहाँ एक कुटी में रहने लगे। हित प्रभु के एक शिष्य परमानंददास जी (राजा परमांनद) उनको एक दिन कहीं मिल गये। दोनों में नित्य विहार की चर्चा छिड़ गई और उससे दोनों को सुख मिला। किन्तु प्रबोधानंद जी का मन किसी बात को मानने को तैयार नहीं होता था। चर्चा में मानसरोवर का भी उल्लेख हुआ और उस स्थान का अत्यन्त रसमय वर्णन सुनकर प्रबोधानंद जी के चित्त का कुछ आकर्षण उसके प्रति हुआ। वे वैशाख की पूर्णिमा की मानसरोवर गये और वहीं रात को रह गये। वहाँ उनको जो अनुभव हुआ उसका वर्णन भगवत् मुदित जी ने इस प्रकार किया है’ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज