हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 479

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

वृन्दावन में इन्होंने सब ठाकुरद्वार (म‍न्दिर) देखे और सब आचार्यों से मिले किंतु इनका मन कहीं जमा नहीं।

सबही ठाकुर द्वारे देखे, और सर्व आचारज पेखे ।
सबके मत नीके करि जानै, पै प्रबोध के मन नहिं आने ।

वृन्दावन में एक मास रहने के बाद वे मथुरा चले गये ओर वहाँ एक कुटी में रहने लगे। हित प्रभु के एक शिष्‍य परमानंददास जी (राजा परमांनद) उनको एक दिन कहीं मिल गये। दोनों में नित्य विहार की चर्चा छिड़ गई और उससे दोनों को सुख मिला। किन्तु प्रबोधानंद जी का मन किसी बात को मानने को तैयार नहीं होता था। चर्चा में मानसरोवर का भी उल्लेख हुआ और उस स्थान का अत्यन्त रसमय वर्णन सुनकर प्रबोधानंद जी के चित्त का कुछ आकर्षण उसके प्रति हुआ। वे वैशाख की पूर्णिमा की मानसरोवर गये और वहीं रात को रह गये। वहाँ उनको जो अनुभव हुआ उसका वर्णन भगवत् मुदित जी ने इस प्रकार किया है’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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