हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 476

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

इसके विपरीत हम जिन प्रबोधानंद का परिचय यहाँ दे रहे है उनके राधावल्लभीय होने के बिलकुल सम-सामयिक प्रमाण उपलब्ध हैं। श्री हरिराम व्यास प्रबोधानंद सरस्वती के समकालीन थे। ‘साधुनि को स्तुति’ में उन्होंने श्री प्रबोधानंद की प्रशंसा में भी एक पद लिखा है और उसमें उनको श्री हित हरिवंश का कृपापात्र बतलाया है।

प्रबोधानंद से कवि थोरे ।
जिन राधावल्लभ की लीला-रस में सब रस घोरे ।
केवल प्रेम विलास आस करि भव-बंधन दृढ़ तोरे ।।

सहज माधुरी बचननि रसिक अनन्यनि के चित चोरे ।
पावन रूप नाम गुन उर धरि विजय-विकार जु मोरे ।।

चारु चरन नखचंद बिम्ब में राखे नैंन चकोरे ।
जाया-माया गृह-देही सौं रविसुत बंधन छोरे ।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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