हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 466

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

11.भावना सागर:- श्रीचतुरशिरोमणिलाल गोस्वामी कृत रचना-काल सं. 1861।

संप्रदाय के साहित्य में यह सबसे बड़ा स्वतंत्र गद्य-ग्रन्थ है। इसमें श्‍याम श्‍यामा के विवाह-विनोद का बड़ा विशद और रोचक वर्णन किया गया है। युगल के अद्भुत प्रेम और रूप एवं सखियों की अद्भुत तत्सुखमई सेवा का मार्मिक परिचय इस ग्रन्थ में मिलता है। स्थान-स्थान पर विभिन्न वाणीकारों के सुन्दर पद या पंक्तियों उद्धृत हैं जो वर्णन की सजीवता को बढा़ते है। ग्रन्थ की भाषा सीधी-सादी है किन्तु अनुभू‍ति की तीव्रता के अनुसार कहीं-कहीं वह गद्य-काव्य बन गई है। एक उदाहरण देखिये:-

‘वह जु कोई परम अद्भुत अमोल मणिनु को हार ताहि, नीलाम्बर की ओट में सूं हाथ निकारि जब वरमाला पहिराई ता समै सगरी बरात की दृष्टि वाही और ही। सबनि जानी कै प्रथम तौ नीलाम्बर रूपी नव धन तै चन्द्रमान के कोटान-कोट समूहन के समूह उदै भये, न जानिये कोटानकोट समूहन के समूह बिजुरीन के, निश्‍चै न परी।’

‘रूप के सहदाने बजन लगे, छबि की नौबत झरन लगी, कटाक्षन की न्यौछाबर हौंन लगी, बिहार की सैना चतुरंगिनी स‍जि कै ठाड़ी होत हित के नगर में बधाई बजत भई।’


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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