हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 464

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

नयौ नेह:- श्रृंगार रस के द्वै विभाग, एक संयोग एक वियोग। यह नयौ नैह एसौ जो संगोग में सदा रहै अरु बढ़नि नियोग सौं नाही, देखन सौं है। ज्‍यौ-ज्‍यौ देखै त्‍यौ-त्‍यौ बढे़, नित नयौ रहै, बढ़ानि निघटै नाहीं।

नव रंग:- प्राप उज्‍ज्‍वल, श्‍याम कौं लाल करै, आप श्‍याम न होइ। ये तीनौ बात और रंगनि तैं नई हैं, तातैं नयौ रंग।

नयौ रस:- रस कहे श्रृगार रस। तकौ स्थाई भाव रति है। यह श्रृंगार लाला जू कौ स्वरूप है। या स्वरूप स्थाई प्रिया जी के रूप में है। हित संधित है, रति संधित नाहीं। यातैं नयौ रस है।

नवल श्‍याम वृषभान किशोरी :- प्रिया जी ने जा श्‍याम स्वरूप कौं अवलोकन कियौ सो काह ने न देख्‍यौ। अरु जा श्‍याम स्वरूप ने प्रिया जी कौं देख्‍यौ सो श्‍याम सदा एक सौ रहयौ, माधुर्य रस निमग्न। बाल, कौमार, पौगंड, अवतार, अवतारी सब नव किशोर स्वरूप में हैं। परन्तु माधुर्य रस अत्यन्त बलवान, उनमें वे कोऊ रूप प्रकाश न होंहि। तातैं दास्यभाव, वात्सल्यभाव और संख्‍यभाव वारेन वह रूप न देख्‍यौ और जे उज्ज्वल रस की अधिकारिनी व्रज में है तिन्हनि न देखे। यह श्‍याम कौ स्वरूप काहू के ने‍त्रनि पर न भयौं तातै नवल है।’

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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