हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 463

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

फिर जा भक्‍त ने हित सौं हरि की भक्ति करी ताके बस भये। फेरि जा भक्‍त नै जैसौ भाव धरयौ ताके हेत तैसौई रूप धरि ताको मनोर्थ पूरन करत भये। देखौ श्री हित कौ प्रताप तौ यह, जो हरि जाके बस औश्र हित को करयौ श्री हरि होय’ ।

9.सेवक चरित्र- श्री प्रिया दास कृत, रचना-काल सं. 1841। इस ग्रन्‍थ का अधिक भाग पद्य में है किंतु इसमें गद्य का अंश भी पर्याप्‍त है। इसमें सेवक जी की जन्‍म की बधाईयां हैं और इसमें प्रथम बार सेवक जी की जन्‍म-तिथि आवरण शुक्‍ला 3 (हरियाली तीज) स्‍थापित की गई है। यह तिथि प्रियादास जी को स्‍वप्‍न में उपलब्‍ध हुई थी। उन्‍होंने इस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है। ‘तब हम उहाँते उठिकैं श्री महाराज दामोदर चन्‍द जू के रास में लता मंदिर में आय बैठे। आगहन बदी 14 सं. 1836 हौं निमग्‍न भयौ। रास में परौ रहूँ। ए‍क दिना ऐसौ कारण भयौ। सो सावन बदी 4 पिछलो रात कौं स्‍वप्‍न भयौ। गौर बरन है, तीस-बत्तीसी बरस की अवस्‍था है, स्‍वेत धोती है, स्‍वेत हो पाग है और स्‍वेत ही उपरना है। पालथी मारै, आसन पर बैठे हैं। आगे चौकी है। ता ऊपर श्रीमद् गिराजू कौ गुटका है। तामें आरूढ़ दसा सौं लौ लीन हृवै रहे हैं, और उनके साम्‍हीं हौं बैठौ हौ। उनने वा गहर में ते निकस कै मेरी ओर देख्‍यौ। तब भोसौ कही कै

सेवकजू कौ जन्‍म-उत्‍सव सावन सुदी तीज के दिना है। सो तूं करि। तब मैंने दंडवत् करकै आज्ञा सिर धर लई’। सेवक चरित्र में गोस्‍वामी कमल नयन जी (सं. 1692-1754) के शिष्‍य अतिवल्‍लभ जी कृत हित चतुरासी के एक पद का अर्थ दिया हुआ है। य‍ह गद्य में है और चमत्‍कार पूर्ण है। उदाहरण के लिये हम यहाँ पद की प्रथम पंक्ति का अर्थ उद्धृत करते हैं।

नयौ नेह नव रंग नयौ रस नवल श्‍याम वृषभान किशोरी ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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