हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 462

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
ब्रजभाषा-बद्य-साहित्‍य

भाव बढा़यौ रसिक जन निजु अनुमादन काम ।
टीका लिखी द्वै मास में रसिक मोदिनी नाम ।।

इस प्रकार सेवक वाणी की यह टीका सं० 1830 और 1835 के बीच में रची गई होगी। इसका गद्य संस्कृत-शब्द-बहुल और प्रौढ़ है तथा इसमें संस्कृत ग्रन्थों के उद्वरण पद-पद पर दिये हुए है। एक उदाहरण देखिये, ‘जब इच्छा होइ इह रस जीवनि कों दुर्गम है सो दिखाईये। तब कृपा करि अपनौ रस व्रज लीला द्वारा प्रगट करें। आप प्रगटैं तब धाम हु, परिकर हूँ, प्रगटै। तहां अचिन्त्य शक्ति करि अप्रगट-प्रगट दोऊ लीला भई चली जांइ, नित्यता में कछु क्षति नांहि’।

इस टीका के लगभग बीस वर्ष बाद गोस्वामी गोवर्धन नाथ जी के शिष्‍य महात्मा रतन दास जी ने ब्रज भाषा गद्य में सेवक वाणी की दूसरी टीका लिखी। इस टीका में मूल का शब्दार्थ स्पष्‍ट करने की उतनी चिन्ता नहीं रखी गई हैं जितनी सेवक जी के हार्द को स्पष्‍ट करने की की गई है। हित के परात्पर ओर सर्व व्यापक स्वरूप का दिग्दर्शन इस टीका में सुन्दर ढंग से कराया गया हैं। इस की भाषा सीधी-सादी किेन्तु भाव व्यक्त करने में पूर्ण समर्थ है। एक उदाहरण दिया जाता हैं-

‘श्री हित पूर्ण प्रभु हैं। देखो प्रसिद्ध हरि काहु के बस नहीं सो श्री हित जू के बस हैं ओर हरि काहू को करयौ न होइ सो श्री हित कौ करयौ होइ। जा जीव ने हित सों हरि की भक्ति करी ताके बस भये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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